कितना अजब संग्राम है


कितना अजब संग्राम है
हर क्षण पराजय हो रही पर
जीतने का नाम है

इस जन्म की सौगन्ध हम
भूखे लड़े हैं भूख से
तन में अगन मन में अगन
फिर भी जुड़े हैं धूप से
खाई बनाकर
पाटना,
दुख से दुखों को
काटना
कितना निरर्थक काम है

जल की सतह पर सिल गए
हल्की हवा से हिल गए
कीचड़ भरे संसार में
जलजात जैसे खिल गए
जल से न ऊँचे
जा सकें
जल से न नीचे
आ सकें
कितना विवश विश्राम है

कुछ दर्द की गरिमा बढ़े
आँसू पिये हँसते रहे
विद्रोह नगरों से किया
वीरान में बसते रहे
कुंडल कवच के
दान का
या कर्ण के
अभियान का
कितना दुखद परिणाम है

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-- आनंद शर्मा

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