बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।
फिर भी मुझको इच्छा-बल से
बढ़ना है- चढ़ना है।
रस्ता चाहे कैसा भी हो
मुझको तय करना है।
दृढ़-विश्वास जो मेरा साथी
क्यों न करूँ प्रयास।
मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।
जीवन के इस इक-इक पल को
मुझको यहाँ भुनाना।
सुख-चंदा-सा, दुख-सूरज-सा
सबको गले लगाना।
दिल में आशा किरण जगी फिर
तम की क्या औकात।
मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।
-- दुर्गेश गुप्त ''राज''
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