दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।
किस्से नहीं सुनाते हम,
हाल-ए-दिल नहीं बताते हम,
ज़ाहिर करते नहीं हम पर
तक़दीर की क्या इनायत है ।
दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।
डरते हैं हम अपने ही कल से,
जीते हैं एक पल से दूजे पल पे,
कैसे बताएँ इनायत करने वाली
तक़दीर की क्या हिदायत है ।
दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।
आज हम बाँटे ख़ुशियाँ अपनी,
रहमदिल हुई कब दुनिया इतनी,
कल छिन गईं तो सह न सकेंगे,
जो हँसी में उड़ाने की रवायत है ।
दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।
"जया झा"
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