कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?

कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?
धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?

बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं
चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।

बैठी थी यों ही, पर वैसे ना रह सकी
सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।

यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया
कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा।

"जया झा "

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