भूल गया
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम।
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम।
गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच 'बज़ार'
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ-मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम।
पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर खुद तक पहुँचे कहाँ
चलकर हम दिन-रात
यहाँ-वहाँ
भटका रहीं
रोशनियाँ अविराम।
पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम।
- राजेंद्र गौतम
6 comments:
बहुत ही गहरी उतारती है यह रचना.....शब्द और भाव ही सुन्दर है
एक अच्छे गीत की प्रस्तुति के लिए शुक्रिया...
गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच 'बज़ार'
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ-मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम।
Very itresting....keep it up..
बहुत ही सुन्दर कविता.आभार.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
bahut hee shandar,jandar,damdar.narayan narayan
पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम।
it just brilliant work...
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