मेरी ज़रूरत

ज़िन्दग़ी के इस तमाशे में 
जब तक ख़ुद भी कोई तमाशा बनकर 
चलती हूँ, तब तक दोस्त की कमी 
महसूस नहीं होती इस पथ पर।

लेकिन कभी जब बनकर मूकदर्शक 
नज़र फेरती हूँ इन तमाशों पर, 
मेरी अनुपस्थिति का कोई प्रभाव 
नज़र नहीं आता है लोगों पर।

टीस उठती है दिल में 
कि मेरी कोई नहीं पहचान। 
मैं किसी की ज़रूरत नहीं हूँ 
हर कोई मानो हो मुझसे अनजान।

इच्छा होती है उस वक़्त कि काश! 
मैं भी होती किसी की ज़िन्दग़ी का हिस्सा, 
किसी की ज़िन्दग़ी के हर पृष्ठ पर होता 
उसका मुझसे जुड़ा कोई किस्सा।

हाँ, एक दोस्त की कामना है मुझे 
जिसे भी हो मेरी ज़रूरत। 
मेरी अनुपस्थिति पर अभाव का अहसास 

हो उसकी ज़िन्दग़ी की एक हक़ीकत।

"आभार : जया झा"

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !


(रचनाकार - रामावतार त्यागी)

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।

किस्से नहीं सुनाते हम,
हाल-ए-दिल नहीं बताते हम,
ज़ाहिर करते नहीं हम पर
तक़दीर की क्या इनायत है ।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।

डरते हैं हम अपने ही कल से,
जीते हैं एक पल से दूजे पल पे,
कैसे बताएँ इनायत करने वाली
तक़दीर की क्या हिदायत है ।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।

आज हम बाँटे ख़ुशियाँ अपनी,
रहमदिल हुई कब दुनिया इतनी,
कल छिन गईं तो सह न सकेंगे,
जो हँसी में उड़ाने की रवायत है ।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है ।

"जया झा"

नहीं, तुम दूर ही अच्छे

नहीं, तुम दूर ही अच्छे ।

दूर जो हो तुम आँखों से
तो मन के एक निष्कलुष संसार में
तुम्हें बसा रखा है मैंने
हृदय के स्वच्छंद विहार में ।

पास आ गए तो रोज़ की हज़ारों
चिंताओं के बीच तुम्हें पाऊँगी कैसे ?

नहीं, तुम दूर ही अच्छे ।

तुम नातों से अलग हो
रिश्तों से परे हो,
मेरे हृदय में एक प्रकाश-पुंज
या रत्न से जड़े हो ।

पास आ गए तो एक ओर तुम्हें रख
दूजी ओर कैसे निभाऊँगी रिश्ते?

नहीं, तुम दूर ही अच्छे ।

जी मचल जाता है तुम्हें याद करते ही,
सिहर जाती हूँ ख्यालों में ही तुम्हें महसूस कर ।
स्वप्नों में भी तो सताते रहते हो,
बहरूपिये सा कोई रूप धर ।

पास आ गए तो इस हृदय की
धड़कन तेज होने से बचाऊँगी कैसे?

नहीं, तुम दूर ही अच्छे ।

तुम स्वप्न-से सुंदर हो,
कल्पनाओं-से मोहक हो,
क्लेश भरे मेरे जग से दूर
धैर्य व शांति के द्योतक हो ।

पास आ गए तो विश्वास नहीं कर पाऊँगी
कि इस जग के हो, फिर भी हो इतने सच्चे ।

नहीं, तुम दूर ही अच्छे ।

"जया झा "

मैं ही तो बेराह नहीं?

सब आ जाते रास्ते पर मैं ही तो बेराह नहीं?
सबके दिन फिरते रब तक जाती मेरी आह नहीं।

छिन जाता है ये भी, वो भी, हँस कर पर देखा करती मैं
बहाने की दो आँसू भी क्यों रह गई मुझको चाह नहीं।

गीत सुना जाते शायर सब, पंछी भी कुछ गा जाते हैं,
दर्द कौन सा है अंदर कि कहती मुँह से वाह नहीं।

इम्तिहान ये ज़िन्दग़ी के इतने लंबे क्यों होते हैं
कहना पड़ जाता है खुलकर – और अब अल्लाह नहीं।

"जया झा "

कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?

कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?
धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?

बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं
चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।

बैठी थी यों ही, पर वैसे ना रह सकी
सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।

यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया
कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा।

"जया झा "

कुछ पीछे छोड़ तो आई हूँ ।

कुछ पीछे छोड़ तो आई हूँ ।

कुछ पिछड़े हुए क़ायदे थे,
कुछ बेवकूफ़ी भरे वादे थे ।
उन्हें छोड़ा ठीक, पर एक सरलता भी थी
उससे भी नाता तोड़ तो आई हूँ ।

कुछ पीछे छोड़ तो आई हूँ ।

आँसू व्यर्थ में निकलते थे,
लोग बेकार ही चिन्ता करते थे,
पर उनके पीछे अपनापन भी था,
अब मैं नहीं जोड़ जो पाई हूँ ।

कुछ पीछे छोड़ तो आई हूँ ।

सर हमेशा झुकाना पड़ता था,
आवाज़ को क़ाबू मॆं लाना पड़ता था,
पर लड़खड़ाने पर किसी का हाथ तो बढ़ता था,
उससे भी मुँह मोड़ तो आई हूँ ।

कुछ पीछे छोड़ तो आई हूँ ।

"जया झा "

अब वो मेरा जहाँ नहीं

अब वो मेरा जहाँ नहीं,
ज़मीं नहीं आसमाँ नहीं।

कुछ बदला हो ना बदला हो
मेरे लिए वो शमाँ नहीं।

हाँ बीता सारा जीवन पर
मन कहता है अब वहाँ नहीं।

चलना है चलना ही है
चलना पड़ता है कहाँ नहीं।

"जया झा "

बचपन में बताया था किसी ने

बचपन में बताया था किसी ने
कि तारे उतने पास नहीं होते
जितने दिखते हैं।
नहीं समझी थी मैं तब,
अब समझती हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
कि सूरज बड़ा दिखता चाँद से
फिर भी वो ज़्यादा दूर है।
नहीं समझी थी मैं तब,
अब समझती हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
चलती गाड़ी पर कि पेड़ नहीं
हम भाग रहे हैं।
नहीं समझी थी तब
अब समझती हूँ।

कोई पास होकर भी दूर कैसे होता है
नज़दीक दिखती चीज़ें कितनी दूर होती हैं
और हम भाग रहे होते हैं चीज़ों से
पता भी नहीं चलता
मान बैठते हैं कि क़िस्मत बुरी है
और चीजें भाग रहीं हैं हमसे।

अब समझती हूँ।

"जया झा "

भूल गया मेरा शहर


भूल गया
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम।

गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच 'बज़ार'
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ-मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम।

पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर खुद तक पहुँचे कहाँ
चलकर हम दिन-रात
यहाँ-वहाँ
भटका रहीं
रोशनियाँ अविराम।

पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम।

- राजेंद्र गौतम

उत्तम पुरुष


दिल में राज़ दफ़न रखता है
उँगली में धड़कन रखता है।
पूछो मत तासीर जुनूँ की
सिर पर बाँध कफ़न रखता है।

वह मड़ई का राजकुँवर हैं
धारदार उसके सपने भी
देवदारु-सा पौरुष उसका
जलते हैं उससे अपने भी

दिखता भले शिला-सा शीतल
उर में तेज़ अगन रखता है।

वह खंडहर की मूरत, जलता
आँधी में दीप सरीखा
कंगन-कुंकुम बनकर उसने
शमशानों में पलना सीखा

पग में नृत्य प्रलय का, कर में
नूतन विश्व-सृजन रखता है।

वह उठता धरती से जैसे
अंकुर फूटा हो भूतल से
वह गिरता भी तो जैसे
आशीष बरसता गगनांचल से

सूरज-चाँद उसी के, मुट्ठी में
उनचास पवन रखता है।

- बुद्धिनाथ मिश्र

सीखो आँखें पढ़ना साहिब


सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्‍किल वरना साहिब

सम्भल कर इल्जामें देना
उसने खद्‍दर पहना साहिब

तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब

दीवारें किलकारी मारें
घर में झूले पलना साहिब

पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब

सब को दूर सुहाना लागे
ढ़ोलों का यूँ बजना साहिब

कितनी कयनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब

-गौतम राजरिशी

मन मेरा ये चाहे छू लूँ

मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

फिर भी मुझको इच्छा-बल से
बढ़ना है- चढ़ना है।
रस्ता चाहे कैसा भी हो
मुझको तय करना है।
दृढ़-विश्वास जो मेरा साथी
क्यों न करूँ प्रयास।

मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

जीवन के इस इक-इक पल को
मुझको यहाँ भुनाना।
सुख-चंदा-सा, दुख-सूरज-सा
सबको गले लगाना।
दिल में आशा किरण जगी फिर
तम की क्या औकात।

मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

-- दुर्गेश गुप्त ''राज''

यह क्या कम है


इन चलते फिरते लोगों में, भीड़ भाड़ में
याद तुम्हारी आ जाती है, यह क्या कम है

कितनी हैं उलझनें यहाँ, रोटी पानी की
नहीं नशीले छन्द जिन्दगी रख सकते हैं
मौसम की रंगीनी, पेट नहीं भर सकती
और न ही ये सपने, तन को ढंक सकते हैं
इतनी उड़ती गर्द धूल में, अन्धकार में
छवि न तुम्हारी मिट पाती है, यह क्या कम है

कोई उत्सव नहीं, व्यर्थ की चहल पहल है
दौड़ रहे हैं लोग, नहीं फिर भी थकते हैं
छिड़ा हुआ संघर्ष, यहाँ आगे जाने का
गिर जाने की छूट, न लेकिन रुक सकते हैं
इतने शोर तमाशे में, इस कोलाहल में
हर ध्वनि तुमको गा जाती है, यह क्या कम है

आवागमन बहुत है लेकिन प्रगति नहीं है
अन्त और प्रारम्भ कि जैसे जुड़े हुए हैं
पहुँच रहे हैं लोग सभी बस एक बिन्दु पर
यों सारे पथ, जगह जगह पर मुड़े हुए हैं
इतनी कुंठाओं में, इतने बिखरेपन में
हवा तुम्हें दुहरा जाती है, यह क्या कम है

इन चलते फिरते लोगों में, भीड़ भाड़ में
याद तुम्हारी आ जाती है, यह क्या कम है

--विनोद निगम

फिर कब आएंगे


चिट्टी पत्री ख़तो किताबत के मौसम
फिर कब आएंगे?

रब्बा जाने,
सही इबादत के मौसम
फिर कब आएंगे?

चेहरे झुलस गये क़ौमों के लू लपटों में
गंध चिरायंध की आती छपती रपटों में
युद्धक्षेत्र से क्या कम है यह मुल्क हमारा
इससे बदतर
किसी कयामत के मौसम
फिर कब आएंगे?

हवालात सी रातें दिन कारागारों से
रक्षक घिरे हुए चोरों से बटमारों से
बंद पड़ी इजलास
ज़मानत के मौसम
फिर कब आएंगे?

ब्याह सगाई बिछोह मिलन के अवसर चूके
फसलें चरे जा रहे पशु हम मात्र बिजूके
लगा अंगूठा कटवा बैठे नाम खेत से
जीने से भी बड़ी
शहादत के मौसम
फिर कब आएंगे?
1
-- नईम

असमय आए


तुम असमय आए, पर आए
आने का मोल
चुकाऊँ क्या?

मधु रीत गया
घट फूट गए
फेरे बसंत के
ऱूठ गए
मन भग्नप्राय, जर्जर प्रासाद
तुम असमय गाए, पर गाए
गाने का मोल
चुकाऊँ क्या?

हेठी सहकर
अनुबंधों की
तजकर गरिमा
प्रतिबंधों की
मरुथल के मूक निमंत्रण पर
तुम असमय छाए, पर छाए
छाने का मोल
चुकाऊँ क्या?
1
-- अभिज्ञात

कितना अजब संग्राम है


कितना अजब संग्राम है
हर क्षण पराजय हो रही पर
जीतने का नाम है

इस जन्म की सौगन्ध हम
भूखे लड़े हैं भूख से
तन में अगन मन में अगन
फिर भी जुड़े हैं धूप से
खाई बनाकर
पाटना,
दुख से दुखों को
काटना
कितना निरर्थक काम है

जल की सतह पर सिल गए
हल्की हवा से हिल गए
कीचड़ भरे संसार में
जलजात जैसे खिल गए
जल से न ऊँचे
जा सकें
जल से न नीचे
आ सकें
कितना विवश विश्राम है

कुछ दर्द की गरिमा बढ़े
आँसू पिये हँसते रहे
विद्रोह नगरों से किया
वीरान में बसते रहे
कुंडल कवच के
दान का
या कर्ण के
अभियान का
कितना दुखद परिणाम है

1
-- आनंद शर्मा

दरबारों मे ख़ास हुए हैं


1दरबारों में
खास हुए हैं
आम लोग सारे।

गलियारों में
पहरे
...पहरे
जनता दरवाज़ों पर ठहरे,
मुट्ठी भर जनतंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे,

राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नहीं
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे।

ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू

हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही,
सफ़ेद वही है
स्वेच्छाचारी औ' अनिवारक
मणिवाहक सारे।

- कमलेश कुमार दीवान

हँसी तुम्हारी चंदा जैसी


हँसी
तुम्हारी चंदा जैसी,
चितवन फूल पलाश
बातें झरना यथा ओसकण
तारों भरा उजास

गुन-गुन
भौंरों जैसे गाना,
और शरारत से मुस्काना
हौले-से,
ही हमें चिढ़ाना
वादा कर फिर हाथ न आना
चमकाती लेकिन फिर भी हो
एक किरन की आस

हँसी
तुम्हारी चंदा जैसी,
चितवन फूल पलाश
बातें झरना यथा ओसकण
तारों भरा उजास

जो भी
दिन है साथ बिताए,
जस फूलों की घाटी घर
नोंक-झोंक
विस्मृति-स्मृति में,
एक क्षीरमय सुन्दर सर
मिलना तुम से तीरथ जैसा,
भूला - बिसरा रास

हँसी
तुम्हारी चंदा जैसी,
चितवन फूल पलाश
बातें झरना यथा ओसकण
तारों भरा उजास

- क्षेत्रपाल शर्मा

सुख-दुख आना-जाना


सुख-दुख आना-जाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

सुख की है कल्पना पुरानी
स्वर्गलोक की कथा कहानी
सत्य-झूठ कुछ भी हो लेकिन
है मन को भरमाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

सुख के साधन बहुत जुटाए
सुख को किन्तु ख़रीद न पाए
थैली लेकर फिरे ढूँढते
सुख किस हाट बिकाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

आस-डोर से बँधी सवारी
सुख-दुख खीचें बारी-बारी
कहे कबीरा दो पाटन में
सारा जगत पिसाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

जब-जब किया सुखों का लेखा
सुख को पता बदलते देखा
किन्तु सदा ही इसके पीछे
दुख पाया लिपटाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

जीवन की अनुभूति इसी में
द्वेष इसी में प्रीति इसी में
इसी खाद-पानी पर पलकर
जीवन कुसुम फुलाना साथी
सुख-दुख आना-जाना।

--अमित

Kishore Kumar - The Man who popularised Yodelling


Kishore Kumar a name that is synonymous with the yodelling that started out in the music world many many years back when only classically oriented singers were giving the playback in the films.

For people who do not know much about Kishore Kumar and probably have heard a few great songs of his and hum them in the pastime being thoroughly ignorant about the singer.

His Birth and His family

Kishore Kumar was born on 4th August 1929 in a middle class home at Khandwa. He was the youngest in the family. Kishore Kumar's father, whose name was Kunjhalal Gangoly, a lawyer by profession, was a modest man. Kishore's mother Gauri Devi, hailed from a wealthy family and had received an education denied in those days to most girls. Of the four children, Ashok Kumar was the eldest, born on 13 October 1911 and was twenty years older than Kishore . He was followed by a daughter who was about 15 years older to Kishore. Her name was Sati Devi. The next was a boy, Anoop Kumar - who was about 5 years older than Kishore, who was the youngest of all.

His Childhood

As a young boy, Kishore was full of mischief and pranks. He loved to play and almost never tired of seeking amusements . He constantly thought up antics to play on his sister and his brother Anoop Kumar. Kishore was very close to his sister, who appreciated his sense of humour. Though the interaction with his eldest brother was minimal as Ashok Kumar left home to study law after graduating in science. He met his brother occasionally when Ashok used to come to visit the family.

Though Kishore went to a prominent school at Khandwa, he was never interested and he hated reading books and having to learn under a discipline that seemed to curb his natural steam.

The Influence

Kishore Kumar used to sing for his parents and they would give him money as a small token. His father often asked him to sing Ashok Kumar's song from the movie Achut Kanya.(Main ban ki chidya .. bolun re..). Kishoreda was good at imitating and this was near to perfect when it came to singing K.L.Saigal's songs. K.L.Saigal turned out to be his mentor and meeting him was his wish at the top of his mind. Sadly, the meeting with Saigal did not take place, for Saigal died soon after Kishore's arrival in Mumbai.

The move into the filmdom

Ashok Kumar thought it was best for Kishoreda to try and pick up acting by initially doing small roles in films and he also considered that just singing was not lucrative as acting. Kishore knew that he was cut out to do the romantic hero. He felt was just an ordinary looking person. In his heart, Kishore resolved to try and pursue a singing career, which he was confident about. He was rejected many times on the pretext of "Your voice is no good; us mein woh cheez nahin hai.'

He was offered a small role in the movie Ziddi and it happened in the making of this movie. Khemchand Prakash heard Kishore Kumar sing and was impressed. He told Ashok Kumar that the boy (Kishore) had a future as a singer. Khemchand went ahead and gave a song to Kishore who executed it in a typical Saigal style..Marne ki duayen lyon maangon.... What impressed Khemchand was the skill with which Kishore held the tune.

The early times with the Burmans

Sr.Burman was visiting Ashok Kumar when he heard Kishore sing in his bath. When he was told who was singing, he decided to wait and meet Kishore. He complimented his singing and told him that he should develop a style of his own. In his own words 'Saigal is undoubtedly a great singer, but there not much sense in imitating him; a singer needs to have a distinct style that is his own.' How true it was what he said.

What launched KK as a hit was Aradhana with his Mere Sapnon Ki Rani under the music direction of S.D.Burman. The rest is history...

Mohammed Rafi

" Dil ka soona saz tarana dhundega,
teer-e-nigahain ka nishana dhundega,
mujhko mere baad zamana dhundega."

A versatile singer, Rafi sang in many Indian languages. His songs, which still remain very popular in India today and also among the Indian diaspora. He was the man him self and he solely dominated the music industry from the 1950s to the 1970s and Mukesh, Manna De and Kishore Kumar used to follow him .

Rafi recorded song for the 1945 film Gaon ki Gori, "Aji dil ho kaaboo mein". He considered this song his first Hindi language song.Rafi was first noted for the song "Tera Khilona Toota Balak" from Mehboob Khan's Anmol Ghadi (1946). His duet with Noor Jehan in the 1947 film Jugnu, "Yahan Badla Wafa Ka" became a hit.

In 1948, Rafi sang "Sun Suno Aye Duniya Walon Bapuji Ki Amar Kahani", written by Rajendra Krishna, which became a huge hit. He was invited by the Indian Prime Minister, Jawaharlal Nehru, to sing at the latter's house. In 1948, Rafi received a silver medal from Nehru on the Indian Independence Day. In 1949, Rafi was given solo songs by music directors such as Naushad, (Chandni Raat, Dillagi and Dulari) Shyam Sunder (Bazaar) and Husnalal Bhagatram (Meena Bazaar).

" aaj purani raho se koi mujhe awaz na de,
dard me dube geet na de,
gham ka jhijhakta saaz na de "



" Meri awaz suno, payar ka raz suno,Maine ek phool jo sine me saja rakhha tha,
Us ke parde me tumhe dil me laga rakhha tha,
Tha juda sabse meri ishq ke andaaz suno,
meri awaz suno "

Rafi's association with Naushad helped the former establish himself as one of the most prominent playback singers in Bollywood. Songs from Baiju Bawra (1952) like "O duniya ke rakhwale" and "Man tarpat Hari darshan ko aaj" furthered Rafi's credentials. Naushad, who had been using Talat Mahmood for his songs, began favoring Rafi as the male voice in almost every song composed by him. Rafi would sing a total of 149 songs (81 of them solo) for Naushad.

In the late 1950s and 1960s, Rafi found favor with other notable composers of the era such as O. P. Nayyar, Shankar Jaikishan and S.D. Burman. Burman patronized Rafi as the singing voice of Dev Anand. Rafi worked with Burman in movies like Tere Ghar ke Saamne (1962), Pyaasa (1957), Kaagaz Ke Phool (1959), Guide (1965), Aradhana (1969), and Abhimaan (1973). O. P. Nayyar was so impressed with Rafi that he got Rafi to sing a song Man mora baawara for singer-actor Kishore Kumar, in the movie Raagini. Later, Rafi would sing for Kishore Kumar in movies such as Baaghi, Shehzaada and Shararat when the the latter was so busy with acting that he didn't have time to record his own songs. O. P. Nayyar employed Rafi and Asha Bhosle for most of his songs. The team created many hit songs in early 1950s and 1960s for movies such as Naya Daur (1957), Tumsa Nahin Dekha (1957) and Kashmir Ki Kali (1964). Rafi sang a total of 197 numbers (56 solo) for O P Nayyar. The combination of Shankar Jaikishan and Rafi is noted for the songs picturized on Rajendra Kumar. Rafi sang a total of 341 numbers (216 solo) for Shankar-Jaikishan.

Rafi got his first Filmfare Award for the title song of Chaudhvin Ka Chand (1960), composed by Ravi. He got his first National Award for the song Babul Ki Duaen Leti Ja from the film Neel Kamal (1968), also composed by Ravi. Ravi and Rafi produced several other hit songs, in the films China Town (1962), Kaajal (1965), and Do Badan (1966). Madan Mohan was another composer whose favorite singer was Rafi. Rafi's first solo with Madan Mohan in Ankhen (1950), "Hum ishq mein barbad hain barbad rahenge", was a great hit. They teamed up to produce many hit songs including "Teri Aankhon ke Siva", "Rang aur noor ki baraat", "Yeh Duniya Yeh Mehfil" and "Tum Jo Mil Gaye Ho". The composer duo Laxmikant-Pyarelal ("L-P") also patronized Rafi as one of their leading singers from their very first film, Parasmani (1963). Both Rafi and L-P won the Filmfare Awards for the song "Chahoonga main tujhe saanjh savere" from Dosti. Rafi sang a total of 369 numbers (186 solo) for LP. Rafi sang for many lesser-known composers as well. Once, when composer Nisar Bazmi did not have enough money to pay him, Rafi charged a fee of one rupee and sang for him.

The 1960s witnessed the straining of relations between Rafi and Lata Mangeshkar. Lata had wanted Rafi to back her in demanding a half-share from the five percent song royalty that the film's producer conceded to select composers. But Rafi took a diametrically opposite view, and believed that a playback singer's claim on the filmmaker ended with the payment of the agreed fee for the song. During the recording of "Tasveer Teri Dil Mein" (Maya, 1961), Lata argued with Rafi over a certain passage of the song. Rafi felt belittled, as music director Salil Chowdhury sided with Lata. The situation worsened when Lata Mangeshkar declared that she would no longer sing with Rafi. Rafi stated that he was only so keen to sing with Lata as she was with him. Later, at the insistence of S. D. Burman the two decided to reconcile and sing duets; on a personal level, there was still tension. During his last years, Rafi was involved in a controversy over Lata Mangeshkar's introduction in to the Guinness Book of World Records. In a letter dated June 11, 1977 to the Guinness Book of World Records, Rafi had challenged the claim that Lata Mangeshkar has recorded the maximum number of songs ("not less than 25,000" according to Guinness). After receiving a rather escapist reply from Guinness, in a letter dated November 20, 1979, he wrote: "I am disappointed that my request for a reassessment vis-a-vis Ms Mangeshkar's reported world record has gone unheeded.". After Rafi's death, in its 1984 edition, the Guinness Book of Word Records stated Lata Mangeshkar's name for the "Most Recordings" but also stated: "Mohammad Rafi ( 1 Aug 1980) claimed to have recorded 28,000 songs in 11 Indian languages between 1944 and April 1980.". Many fans of Rafi state that he has sung over 28,000 songs. However, according to the available figures, Rafi has sung 4,516 Hindi film songs, 112 non-Hindi film songs, and 328 private (non-film) songs from 1945 to 1980. The Guinness Book entries for both Rafi and Lata were later removed in 1991.

Between 1950 and 1970, Rafi was one of the most sought after singers in Bollywood. He sang for all the major male stars in Hindi films. In 1965, he was honoured by the Government of India with the Padma Sri award. Rafi recorded two Hindi songs in English on 7" release in 1968. He also sang a song in Creole while on his visit to Mauritius in the late 1960s. Rafi recorded two English albums as well. One of them is Pop Hits. In Bollywood, yodeling is generally associated with Kishore Kumar but Rafi introduced yodeling in Indian film as playback singing before Kishore Kumar took it to a whole different level and perfected it. Rafi yodeled in some of old songs, such as "Hello sweety seventeen" (duet with Asha Bhosle), "O Chale ho kaha", "Dilke Aine main", and "Unse Rippy Tippy Ho gayee" (duet with Geeta Dutt).


During 1971-1976, Rafi's musical output decreased; however, he did deliver several hits. Some of Rafi's popular songs of the early 1970s were with music directors like Laxmikant Pyarelal, Madan Mohan, R. D. Burman and S. D. Burman. These include "Yeh Duniya Yeh Mehfil" from Heer Ranjha (1970), "Chura Liya Hain Tumne" from Yaadon Ki Baarat (1973), "Yeh Jo Chilman Hain" and "Itna to Yaad Hain Mujhe" from Mehboob Ki Mehndi (1971), "Tum Jo Mil Gaye Ho" from Hanste Zakhm (1973), "Gulabi Aankhen" from The Train, Aaj Mausam bada Beimaan hai from Loafer (1973), and "Jhilmil Sitaron ka" from Jeevan Mrityu (a duet with Lata Mangeshkar, 1974).

Rafi made a comeback as a leading singer in the mid-1970s. In 1974, he won the Film World magazine Best Singer Award for the song "Teree Galiyon Mein Na Rakhenge Qadam Aaj Ke Baad" (Hawas) composed by Usha Khanna.In 1977, he won both Filmfare Award and the National Award for the song "Kya Hua Tera Wada" from the movie Hum Kisi Se Kum Nahin, composed by R. D. Burman.[9] Rafi sang for Rishi Kapoor in films like Amar Akbar Anthony (1977), Sargam (1979) and Karz (1980). The qawwali "Pardah Hai Pardah" from Amar Akbar Anthony (1977) was a superhit. Rafi's notable renderings in the late 1970s and early 80s include Laila Majnu (1976), Apnapan (1978), Qurbani, Dostana (1980), The Burning Train (1980), Naseeb (1981), Abdullah (1980), Shaan (1980), and Asha (1980). Rafi's comeback phase had once again brought him back as a leading playback singer.

On Thursday, July 31, 1980, Rafi died at 10:50 p.m., following a massive heart attack. His last song was "Shaam phir kyun udaas hai dost" (Aas Paas), which he had recorded with Laxmikant-Pyarelal several days before his death. He was survived by four sons (Saeed Rafi, Khalid Rafi, Hamid Rafi, Shahid Rafi), 3 daughters (Parveen, Nasreen, Yasmin) and 18 grandchildren.

Naushad wrote on Rafi's Death-
" Goonjte hai teri awaz ameero ke mahal me.
jhopro ki gharibon me bhi hay tere saaz,
yu to apne mousiki par sab ka fakr hota hai
magar ay mere saathi mousiki ko bhi aaz tujh paar naaz hai "

Thousand Deaths

Walking alone
hands in the pocket,
Shining lights lined across the street,
Staring around with Cold eyes
Invisible among strangers
Straying thoughts
Lost Opportunities
Abandoned hopes
Unsaid words
Oh I am dying a thousand deaths every waking hour.

A promise

I am no immortal to
promise you undying love.
I am no saint to
promise you sacrifices.
But know this my love,
This is me,
old, tired and thin
promising to be there until I breathe.

मन

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।

अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससे नहीं ज़रा सी।

प्रश्न है खुद से जिसको ढूँढ़ा
क्या वो कोई मरीचिका थी?

और उसे सब कुछ दे डाला
बची है बस ये राख चिता की।

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

कितनी बार तुम्हें देखा

कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।

सीमित उर में चिर-असीम
सौंदर्य समा न सका
बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग
मन रोके नहीं रुका
यों तो कई बार पी-पीकर
जी भर गया छका

एक बूँद थी, किंतु,
कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी।

कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।

शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी
कण-कण में बिखरी
मिलन साँझ की लाज सुनहरी
ऊषा बन निखरी,
हाय, गूँथने के ही क्रम में
कलिका खिली, झरी

भर-भर हारी, किंतु रह गई
रीती ही गगरी।

कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।

--शिवमंगल सिंह सुमन

Kaminey - Title track (Very meaningful)

(Kya Kare Zindagi Isko Hum Jo Mile
Iski Jaan Kha Gaye, Raat Din Ke Gile) - 2
Raat Din Gile
Meri Aarzoo Kamini, Mere Khwab Bhi Kaminey
Ek Dil Se Dosti Thi, Yeh Huzoor Bhi Kaminey
Kya Kare Zindagi Isko Hum Jo Mile
Iski Jaan Kha Gaye, Raat Din Ke Gile

(Kabhi Zindagi Se Maanga, Pinjre Mein Chaand La Do
Kabhi Laanten Deke, Kaha Aasmaa Pe Taango)  2
Jeene Ke Sab Kareene The Hamesha Se Kaminey
Kaminey Kaminey Kaminey Kaminey
Meri Daastaan Kamini, Mere Raasten Kaminey
Ek Dil Se Dosti Thi, Yeh Huzoor Bhi Kaminey

Jiska Bhi Chehra Cheela, Andar Se Aur Nikla
Masoom Sa Kabootar Naacha To More Nikla
Kabhi Hum Kaminey Nikle, Kabhi Doosre Kaminey
Kaminey Kaminey Kaminey Kaminey
Meri Dosti Kamini, Mere Yaar Bhi Kaminey
Ek Dil Se Dosti Thi, Yeh Huzoor Bhi Kaminey

Yahi hota pyar hai kya

Javed Akhtar:
nind ke baadalon ke pichhe hain
muskuraata huwa koyi chehara
chehare par bikhari ek reshami latt
sarsaraata huwa koyi aanchal
aur do aankhein hairaan haira si

tera banega woh jo, tera nahi hai 
aye dil bata kyun tujko, itna yakin hai 
mere dil-e-beqkaar
haan dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya
mere dil-e-beqkaar
haay
yahi hota pyaar hai kya
mere dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya

Javed Akhtar:
nind ke baadalon ke pichhe hain
ek mulaakaat
ek haseen lamha
jheel ka thehara thehara sa paani
ped par chehchahaati ek chidiyaan
baagh mein khilate nanhe nanhe phool
khubsurat labon ki narm si baat

khwaabon mein koyi kyun hai yuun rehta
aye dil tu kyun mujhe hain yeh kehta
woh mera rasta bhi hai, aur woh hi manzil 
woh mera sagar bhi hai, aur woh hi saahil
kaisi bata yeh betaabiyaan hain
hum chalte chalte aye kahaan hain
dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya 
mere dil-e-beqkaar
haay
yahi hota pyaar hai kya
mere dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya

Javed Akhtar:
nind ke baadalon ke pichhe hain
dopaher ek pili pili si
lohe ki thandak ke lehje mein
tuta aaina, udate kuchh kaagaj
kirchon kirchon bikhrata ek mandar
palkon pe jhil-milaata ek aansu
ghehara sannata, shor karata huwa
nind ke baadalon ke pichhe hain

sunta hoon mein teri yeh dastaan
simmte ki ek din to yeh dooriyaan
pal mere tum mein dil koyi nahi hai 
tere zidd mein aye dil sadd afreen hai 
kyun yeh junoon hai, kya zustju hai
aakhir tujhe kyun, yeh aarzoo hai
dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya 
mere dil-e-beqkaar
haay
yahi hota pyaar hai kya
mere dil-e-beqkaar
yahi hota pyaar hai kya

Tumhari Yaad

un dino, jab ke tum the yahaan
zindagi jaagi jaagi si thi
saare mausam bade mehraba dost the
raaste, daawatnaame the jo manjilon ne likhein the jamin par hamaare liye
ped baahein pasaarein khade the
hame chaanv ki swaal pehnaane ke waaste
shaam ko sab sitaare, bahot muskuraate the jab dekhate the hamein
aati jaati hawaayein, koyi geet khushboo ka gaati huyi, chhedati thi, guzar jaati thi
assama ??pigle-neelam ka ek gehra taalaab tha
jisme har raat ek chaand ka phool khilta tha
aur ??pigle-neelam ki leharon mein behta huwa
woh hamaare dilon ke kinaaron ko chhu leta tha
un dino, jab ke tum the yahaan

ashko mein jaise dhul gaye, sab muskuraate rang
raste mein thak ke so gayi maasum si umang
dil hai ki phir bhi khwaab sajaane ka shauk hai
paththar pe bhi gulaab ugaane ka shauk hai
barso se yun to ek amaawas ki raat hai
abb isako hausala kahoon ki jidd ki baat hain
dil kehta hain andhere mein bhi roshani to hai
maana ke raakh ho gaye ummid ke ye ???
is raakh mein bhi aag kahi par dabi toh hain

aapaki yaad kaise aayegi
aap ye kyun samajh na paate hain
yaad toh sirf unaki aati hai
hum kabhi jinko bhool jaate hai

:- Javed Akhtar

Musaafir

jaane kiski talaash unaki aankhon mein thi
aarajoo ke musaafir bhatkate rahein
jitane bhi woh chale
utane hi bichh gayein raah mein faasalein
kwaab manjil thi aur manjilein khwaab thi
raaston se nikalate rahein raaste
jaane kis waste aarjoo ke musaafir bhatkate rahein

koyi puraani yaad mera rasta roke mujhse kehti hai
itani jalati dhoop mein yuun kab tak ghumoge
aayo, chalke bitein dino ki chhanv mein baithe
us lamhein ki baat karein
jisme koyi phool khila tha
us lamhein ki baat karein ke
jisme kisi aawaaz ki chaandi khanak uthi thi
us lamhein ki baat karein ke
jisme kisi nazaron ke moti barse the
koyi puraani yaad mera rasta roke mujhse kehti hai
itani jalati dhoop mein yuun kab tak ghumoge

sach toh yeh hai kasoor apana hain
chaand ko chuune ki tamanna ki
aasamaan ko jamin par maanga
phool chaaha ki paththaron pe khilein
kaanton mein ki talaash khoshboo ki
aarjoo ki ke aag thandak de
barf mein dhundate rahein garmi
khwaab jo dekha chaaha sach ho jaaye
isaki humko saja toh milani hi thi
sach toh yeh hai kasoor apana hain

:- Javed Akhtar

Jab we met..again

And we met one day 
you were surprised, i was shocked.. 
you smiled, i shrugged. 
“Long time” 
“yeah” 
and a silence followed. 


Last time, your silence had broken me 
this time, you broke the silence. 
“I have to go, he would be waiting.” 
“Ah, sure. I hope we meet again… 
somehow, somewhere” 
We parted our ways again, 
but with a goodbye and smile, 
oh really? 

We could have talked, 
about our lives without each other, 
or rather about.. 
how you landed in this city again. 
or rather about.. 
old buddies and good old times. 

No, not really.. 
how can we become so casual, 
after all that had happened. 

But we could have said something else 
on weather, winds, sun, countries… 
Thousands of things 
people talk about 
when they have nothing 
to say to each other. 

But we went away, 
We were ashamed 
of surviving without each other 
for all these goddamn years

Sab kehte hain mai deewana hu

mujhko teri aawaaz se khushboo aati hai
aur khushboo mein rang dikhaayi dete hai
tu jab nahi hai tab bhi tu hai saath mere
milon se chhute hai tujhko haath mere
woh jo teri saanson mein hai ghulein huye
kahin rahoon woh geet sunaayi dete hai
baadal, titli, kaliyaan, lehrein, phool, hawaan
ye sab tere roop dikhaayi dete hain
main hoon, tera naam hain, teri baatein hain
har pal dohraata tera afsaana hoon
mujhko to abb hosh nahin hain
tu hi bata, sab kehte hain main tera deewaana hoon

:- Javed Akhtar

जय हो!


जय हो!
लूट मार के बाद सभी का अपना हिस्सा तय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

दल बदलू वोटों की जय हो
संसद में नोटों की जय हो
लोकतंत्र की इस चौपड़ में
अमरीकी गोटों की जय हो
सीनाजोरी करता फिरता हर दलाल निर्भय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

सच पर प्रतिबंधों की जय हो
जाँचों के अन्धों की जय हो
लोकतंत्र के नाम चल रहे
सब काले धंधों की जय हो
मतलब तो सीधा सपाट पर पेंचदार आशय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

पंजों की कमलों की जय हो
काँटों के गमलों की जय हो
कन्याओं पर राम नाम की
सेना के हमलों की जय हो
गूंगी जनता बहरा शासन अंधा न्यायालय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

-- वीरेन्द्र जैन

Destiny

Hope is still there……..
For my dreams to come true..
My aims are still fair……
To touch the sky in blue…….
My destiny is a bit away……..
The journey is still to reach……..
I’ll always hope and stay……..
I am waiting at the beach ….
I’ll never leave my hopes…..
As I know I’ll some day shine…….
I’ll catch my ambitious ropes……..
As I know my destiny will be mine….!

Fake

The whole world is fake
the faces around us
we all seem to hate
we live a lie
up until the day we die
trying to be someone were not
not being ourselves
no matter what
all living are lives
as a sharade
letting our true selves fade and fade
why cant we all be real
tell people how we truly feel
it seems as though
this is how its always gonna be
not having a true definition of the word Me,
just simply acting to make ourselves look good
not being who we are
like we should ..

Heaven or Hell

Can anybody give me an answer why GOD had created this beautiful world, so that man can kill man, so what’s the difference between an animal and a human being, if a man can very well behave like an animal, there should be no separate category to distinguish them. A beautiful life is given to us, so that we cherish it, do good deeds, portray good thoughts and behave like human beings. It was said in holy books that there will be phases in life of world, when this world will witness hell itself. One can see it very clearly, there will be a phase when man will not respect manhood, he will go beyond his limit and think about himself, and even the relations would turn out to be blue in light. Can’t one see a live coverage of what’s written in holy books? The spirits of relations are somewhere dampen in the soil, people thrash others so badly that they are not even bothered to look down, at any cost of whose feelings u levitate.
The brutal act of humanity is bearing the brunt in form of wars and terrorist attacks, where people kill each other in such a way as if playing games with each other. Each day, each night,
The agony the pain, the vain, the sufferings. Why GOD did I take birth in this misery where I couldn’t savor this beautiful world. Were my deeds so bad, that I was born to see these,
Devastating sights all over, where living each day itself is a hell?
Please GOD I have a wish if I take a rebirth I would love to see ecstasy and not torment!!!

Everything I do, I Do It For You

Look into my eyes - you will see
What you mean to me
Search your heart - search your soul
And when you find me there you'll search no more

Don't tell me it's not worth tryin' for
You can't tell me it's not worth dyin' for
You know it's true
Everything I do - I do it for you

Look into your heart - you will find
There's nothin' there to hide
Take me as I am - take my life
I would give it all - I would sacrifice

Don't tell me it's not worth fightin' for
I can't help it - there's nothin' I want more
Ya know it's true
Everything I do - I do it for you

There's no love - like your love
And no other - could give more love
There's nowhere - unless you're there
All the time - all the way

Oh - you can't tell me it's not worth tryin' for
I can't help it - there's nothin' I want more
I would fight for you - I'd lie for you
Walk the wire for you - ya I'd die for you

Ya know it's true
Everything I do - I do it for you

-Bryan Adams

कुछ नहीं चाहा

कुछ नहीं चाहा है तुमसे
पर तुम एक खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है
कुछ पल चुनने का मन करता है
तुम्हे पकड़ पास बिठाने को मन करता है

कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक लगाव हो
जिसे कुछ सुनाने को मन करता है
कुछ भी कहने को मन करता है
तुम्हे पुकार बस हाँ या ना कहने को मन करता है
कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक पर खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है।

- रजनी भार्गव

आसान रास्ते

आसान रास्ते कोई और चुने
उनपर कोई और चले।
मुझे चाहिए वह रास्ता जिसमें
काँटें हों, कंकर और पत्थर हों
जो भयानक जँगलों से गुज़रे -
उस पार कोई ऐसा सूरज है
कोई ऐसी दुनिया है
जो किसी ने नहीं देखी है।
शायद मैं मर जाऊँ,
घायल हो कर गिर जाऊँ।
तो क्या?

- विक्रम मुरारका

शून्य

नौ असम अंक, और एक सम आधार,
‘आदि’ से ‘अन्त’ तक जुड़ा वह बेछोर वक्री आकार, ‘शून्य’।

सुबह के उत्तेजित मुख पर छिटका सिन्दूर,
पराजित शाम कि रगों में ठंडा होता खून!
झील की असीम शांति में सोया,
सागर लाहरों के ताण्डव में खोया ।
नीले आकाश की रिक्तता से रिक्त,
आकाश गंगा के तारों में फैला विस्तृत,
विशाल ‘शून्य’ ।

तरुणी के चंचल नयनों की थाह,
‘प्रेम – मोह’ के मध्य वह संकरी सी राह ।
सम्बंधों के चौराहे पर, संकल्पों का पेड़,
तिन – तिन कर झरते पत्ते, यह मौसम का फेर ।
खण्डित, बोझिल हृदय का एकांत,
मान – मस्तिष्क का चलता युध्द नितांत ।
सब ‘शून्य’ ।

स्वार्थता के मंच पर भावनाओं से क्रीड़ा,
पत्थर तोड़ते नाज़ुक हृदय की पीड़ा ।
तर्क तक सीमित वह ज्ञान,
प्रकृति से जूझता, असफल विज्ञान ।
लाशों के ढेर पर जनतंत्र की पताका,
‘उत्पत्ति’ के नाम पर एटम – बम का धमाका ।

और फिर ‘शून्य’ ।
पर ‘आत्म’ बेकल भटकता है, परमात्म पाने को,
विडम्बनाओं और आस्थाओं की भीड़ में ,
खोजता ‘शून्य’ को एक ‘शून्य’ ।

- संजीव शर्मा

Is sham ko ji bharke jilo

kal kya hoga, ye mat socho
tum ye dekho, ki shaam ke daaman mein kya hai
madham madham si roshaniyon mein, dhun pe machalate jismon par halki si damak
lehraati huyi sandal baahein
balkhaati huyi resham julfein
ye ang ang, ye jhalak jhalak, sheeshon ki khanak
sheeshon ko chhute naazuk labj, jinme shaam ki surkhi hai
hirani si vaishi aankhon mein, anjaane se paigaam basein
ye dekhke inko behake to ilzaam kise
in lamhon ke pyaalon mein jitni masti hai
saari ki saari tum pi lo
is shaam ko ji bharke jilo

kal jo bhi hoga dekhenge

:~ Javed Akhtar

 

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